रविवार, 3 अक्तूबर 2010

विज्ञापन के अलावा और दूसरी जगह सैनिकों का होता अपमान क्यों नहीं दीखता

September 27, 2010

कंपनी का नाम माइक्रोमेक्स मोबाइल का नाम क्यूब , विज्ञापन हटवाने में सहयोग करे




अपने सैनिक तो ये हैं नहीं लेकिन हम अपने सैनिको के प्रति कितने निर्मम हैं ये विज्ञापन इस बात का प्रतीक हैं । असंवेदनशीलता की हर सीमा को तोड़ता हैं ये विज्ञापन । वो सैनिक जो हमारी सुरक्षा मे पहरा देते हैं उनके प्रति इस प्रकार का रवाया रखना एक बेहद गिरी हुई सोच हैं ।

इस लिंक पर जा कर अपना आक्रोश व्यक्त करे और इस विज्ञापन को शीघ्र बंद करवाने की कोशिश मे अपना योगदान दे ।

मै ऐसे हर विज्ञापन की भर्त्सना करती हूँ जिस मे देश के गौरव को एक बफून बनाया गया हैं । आप के सहयोग की प्रतीक्षा हैं ।

इस पोस्ट को जितने लोगो को पढवा सके और उनसे ऊपर दिये लिंक पर मेल करवा सके तो अच्छा होगा

कंपनी का नाम माइक्रोमेक्स
मोबाइल का नाम क्यूब हैं


Please go on this link
to get the advertisement off air .
company name micromax
model Qube

इस पोस्ट को मूल रूप में इस लिंक के द्वारा देखा जा सकता है

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इस पोस्ट का विश्लेषण
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आज के रविवार की पोस्ट विश्लेषण में नारी ब्लॉग की पोस्ट को लिया गया है। इस पोस्ट में टी0वी0 पर दिखाये जा रहे एक विज्ञापन को आधार बनाया गया था। इस पोस्ट के द्वारा सभी से अपील की गई थी कि एक विशेष लिंक पर जाकर सम्बन्धित विज्ञापन के प्रति विरोध दर्ज करवायें। इस विरोध के पीछे का मूल विज्ञापन में दिखाये जा रहे चित्रण के द्वारा सैनिकों के अपमान का मुद्दा उठाया गया था।

किसी भी रूप में किसी बात का विरोध करना बहुत आसान होता है किन्तु यदि विरोध का आधार सही न हो तो विरोध करने की नीयत पर ही शंका हो जाती है। टी0 वी0 के रंगीन संसार में दिखाये जा रहे विज्ञापनों और अन्य दृश्य सामग्री में बहुत से आपत्तिजनक चित्रण दिखाये जाते हैं। इस बार की इस सम्बन्धित पोस्ट के द्वारा सैनिकों के अपमान की चर्चा की गई।

सर्वप्रथम तो पोस्ट के लेखक को साधुवाद कि उन्होंने सैनिकों के सम्मान-अपमान की चर्चा करना आवश्यक समझा। अब इसके दूसरे पहलू को देखें तो समझ में नहीं आता कि सैनिकों के मान-अपमान के लिए एक छोटा सा विज्ञापन ही आधार क्यों बनाया गया? इसके अलावा एक और सवाल मन में उभरता है कि आखिर इस विमर्श के लिए इसी विज्ञापन को ही आधार क्यों बनाया गया?

पोस्ट में जो विज्ञापन दिखाया गया है उसमें सैनिकों को लड़ते और एक सैनिक को मोबाइल का प्रयोग करते दिखाया गया है। इसी में उसके साथ का दूसरा सैनिक बार-बार उससे मोबाइल छीनने की कोशिश करता है, इसका सीधा सा अर्थ यह लगाया जा सकता है कि वह मोबाइल छीनकर उस सैनिक को लड़ने के लिए उकसाता है। देखा जाये तो यहां अपमान जैसी बात कहां से दिखती है? क्या सैनिक का एकमात्र कार्य लड़ना ही है यदि हां तो फिर कभी बाढ़ के लिए सैनिक शक्ति का प्रयोग, कभी गड्ढे से बच्चे को निकालने में सैनिकों को लगाया जाना, कभी छोटी-छोटी सी झड़प के बाद सैनिकों को तैनात कर देना भी सैनिकों का अपमान ही होगा। इस तरह के अपमान को पोस्ट के रचनाकार के द्वारा नहीं दिखाया गया है।

अब इस पोस्ट के दूसरे पहलू को देखें जो विज्ञापन के सम्बन्ध में है। यदि इस विज्ञापन में दिखाई जाने वाली सामग्री को आपत्तिजनक बताया जाये तो इस विज्ञापन के अलावा और भी बहुत से विज्ञापन हैं जिनमें बहुत ही ज्यादा विवादग्रस्त और आपत्तिजनक सामग्री दिखाई जा रही है। पोस्ट में इस तरह के किसी और विज्ञापन को आधार नहीं बनाया गया है। इसका तात्पर्य स्पष्ट है कि पोस्ट के द्वारा विज्ञापन को नहीं विज्ञापन में सैनिकों को इस तरह से दिखाया जाना मूल में है।

इसके परिदृश्य में पोस्ट लेखक को सैनिकों के प्रति सम्मान-अपमान नहीं वरन् एक चर्चा को चर्चा बनाने के लिए पोस्ट को आधार बनाया गया। देश में सैनिकों के प्रति देशवासियों में कम हो रही सम्मान-आदर-भावना का कारण ऐसे विज्ञापन तो कतई नहीं हैं। इसके पीछे मूल कारण है हमारी अपनी सोच का, यही सोच इस पोस्ट में भी दिखती है।
यदि सैनिकों के मान-अपमान की चर्चा ही करना था तो कश्मीर में हाथ बांधे खड़े और पत्थर खाते सैनिक पोस्ट रचनाकार को नहीं दिखे? दंगों में उच्चाधिकारियों के आदेश का इंतजार करते और अपने आपको अपमानित महसूस करते सैनिकों का अपमान नहीं दिखा? आये दिन आतंकवादियों को पकड़ने में जान जोखिम में डालना और फिर देश की राजनीति के कारण उन्हीं आतंकवादियों की रक्षा करना भी तो सैनिकों का अपमान ही है।

इस विज्ञापन में सैनिकों के कार्य और मोबाइल का प्रयोग कर रहे सैनिक के व्यवहार का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करें तो आसानी से ज्ञात होता है कि यदि एक मोबाइल के द्वारा किसी भी तरह से लड़ाई रुक सकती हो तो क्या बुराई है? लड़ाइयां रोकने के लिए तो समूचे देश ही प्रयत्नशील हैं, ऐसे में इस विज्ञापन के द्वारा शान्ति के संदेश का प्रचार-प्रसार करने की कोशिश क्यों नहीं की जा रही?

अन्त में बस यही कि मात्र विरोध करने के लिए विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि यह रास्ता गलत होता है। सैनिकों के अपमान को रोकने के लिए हम सभी को मिलकर काम करना होगा। किसी एक विज्ञापन के द्वारा सैनिकों के मान-सम्मान को रोका और बढ़ाया नहीं जा सकता है। हमें अपनी सोच को विकसित करना होगा और सार्थक दिशा में अपनी सोच को बढ़ाना होगा।

नमस्कार...पुनः अगले रविवार को एक और पोस्ट विश्लेषण के साथ

1 टिप्पणी:

रचना ने कहा…

vigyapan band kar diyaa gayaa haen
mujeh hi nahin bahuto ko ismae saniko apmnaan dikha thaa

aap kaa desh prem sirf bundelkhand tak hi simit haen is liyae aap ko nahin dikhaa !!!!!!!!!!!!!!!!!